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Archives for November 2020

What is Data Warehousing in Hindi?

Author: admin | On:28th Nov, 2020 | 116 View

What is Data Warehousing in Hindi?

Definition of Data Warehousing in Hindi :-  डेटा वेयरहाउसिंग का उपयोग किसी व्यवसाय या संगठन द्वारा विभिन्न प्रकार के जानकारी या डेटा को संग्रहित करने के लिए किया जाता है। डाटा वेयरहाउस में अलग-अलग स्रोतों से मिलने वाले डेटा को एकत्रित करके उनका विश्लेषण किया जाता है, इन डेटा के उपयोग से संगठनों को विभिन्न प्रकार के निर्णय लेने में मदद मिलती है।

अगर साधारण शब्दों में कहे तो डाटा वेयरहाउस नेटवर्क या इंटरनेट से जुड़ा हुआ एक कंप्यूटर होता है, किसका उपयोग मुख्य रूप से अलग-अलग स्त्रोतों से प्राप्त डेटा को एकत्र करने तथा उनका विश्लेषण करके एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है।

Example of Data Warehouse :- उदाहरण के लिए मान लीजिए कि अगर किसी संगठन के द्वारा किसी देश के अलग-अलग शहरों में कई दुकानों को चलाया जाता है, तो इस संगठन द्वारा रोज की कुल बिक्री तथा लाभ का पता लगाने के लिए इन प्रत्येक दुकानों से प्राप्त रोज के जानकारियों को एक जगह पर एकत्रित करने की आवश्यकता होती है, इसी प्रकार के आवश्यकता को पूरा करने के लिए डाटा वेयरहाउस की तकनीक का उपयोग किया जाता है।

Functions of Data Warehouse in Hindi

Functions of Data Warehouse in Hindi:- डाटा वेयरहाउस के अंतर्गत किए जाने वाले प्रमुख कार्य निम्नलिखित रुप से है :-

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  • Data Extraction (डेटा एक्सट्रैक्शन) :− डाटा वेयरहाउस में कई अलग-अलग स्रोतों से डेटा को प्राप्त करके उन्हें इकट्ठा किया जाता है।
  • Data Cleaning (डेटा क्लीनिंग) :− डाटा वेयरहाउस में अलग-अलग स्त्रोतों से प्राप्त डेटा के अंदर त्रुटियों को ढूंढ कर उन्हें ठीक किया जाता है।
  • Data Transformation (डेटा ट्रांसफॉर्मेशन) :− अलग-अलग स्त्रोतों से मिलने वाले डेटा का प्रारूप भी एक दूसरे से अलग-अलग होता है, इसलिए डाटा वेयरहाउस में इन सभी अलग-अलग प्रकार के डाटा के प्रारूप को समान फॉर्मेट या प्रारूप में परिवर्तित करके जमा किया जाता है।
  • Data Loading (डेटा लोडिंग) :− डाटा लोडिंग के अंतर्गत डाटा समूह से डुप्लीकेट जानकारियों को रिमूव कर दिया जाता है और डाटा को सामान क्रम में व्यवस्थित करके अरेंज किया जाता है।
  • Data partitions (डेटा पार्टिशन):− इसके अंतर्गत समान प्रकार के डाटा को सुव्यवस्थित करने के लिए अलग-अलग खंडों में विभाजित किया जाता है।
  • Data summarizing (डेटा समराइज़ींग) :- इसके अंतर्गत डाटा को सनराइजर या कम्प्रेस करके छोटा करने का प्रयास किया जाता है।
  • Data analysis (डेटा एनालिसिस) :- इसके अंतर्गत डाटा वेयरहाउस में जमा डेटा का पूर्ण विश्लेषण किया जाता है तथा अधिकृत अधिकारियों के समक्ष आवश्यक रिपोर्ट प्रस्तुत किया जाता है।

Types of Data Warehouse in Hindi

Types of Data Warehouse in Hindi:- डेटा वेयरहाउस मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता हैं:-

  • Enterprise Data Warehouse (एंटरप्राइज़ डेटा वेयरहाउस) :- इसमें जानकारियों को एक केंद्रीकृत डेटाबेस में संग्रहित किया जाता है।
  • Operational Data Store (ऑपरेशनल डेटा स्टोर) :- इस प्रकार के वेयरहाउस में जानकारियों को संग्रहित करने के लिए real time (रियल टाइम) डेटाबेस का उपयोग किया जाता है।
  • Data Mart (डेटा मार्ट):- यह फाइनेंस तथा सेल्स कैसे व्यापारिक कार्य के लिए बनाया गया एक विशेष प्रकार का डाटा वेयरहाउस होता है।

Advantages of Data Warehouse in Hindi

  • चूँकि डाटा वेयरहाउस में अलग-अलग स्त्रोतों से जानकारियों को एकत्रित करके जमा किया जाता है, इसलिए इसके उपयोग से विभिन्न संगठन महत्वपूर्ण जानकारियों को एक ही स्थान से प्राप्त कर सकते हैं।
  • डाटा वेयरहाउस किसी संगठन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियों को एक संकुचित रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे कि संगठन के मैनेजर तथा अधिकारियों को महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करके निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  • यह आवश्यक जानकारी प्राप्त करने तथा उनके विश्लेषण करने में लगने वाले समय को कम कर देता है क्योंकि इसमें सभी जानकारियों को पहले से ही सही प्रारूप या फॉर्मेट में तैयार रखा जाता है।
  • इसमें जानकारियों को प्राप्त समय के अनुसार संग्रहित किया जाता है, जिससे कि अधिकारियों द्वारा बदलते समय के अनुसार डाटा में होने वाले परिवर्तन का बहुत आसानी से विश्लेषण किया जा सकता है।
  • अलग-अलग विभाग या शाखाओं में विभाजित व्यवसायिक संगठन के लिए डाटा वेयरहाउस उपयोगिता और अधिक हो जाती है, क्योंकि ऐसे संगठनों के लिए प्रत्येक जानकारी को एक जगह इकट्ठा किए बिना उनके विश्लेषण करने का कोई और तरीका है ही नहीं।
  • इसमें जमा डाटा की विश्वसनीयता को बहुत आसानी से जांचा जा सकता है, यह इसके गुणवत्ता को बढ़ाता है।
  • डाटा वेयरहाउस पर होने वाला रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट बहुत अधिक है, अर्थात इसे बनाने में लगने वाला खर्च की तुलना में इससे मिलने वाले लाभ बहुत अधिक है।

Disadvantages of Data Warehouse in Hindi

  • इसमें किसी संगठन से संबंधित सभी जानकारियों को एक जगह इकट्ठा किया जाने के कारण डेटा की सुरक्षा तथा निजता का खतरा उत्पन्न हो जाता है, क्योंकि अगर किसी कारण बस इन डेटा तक किसी गैर अधिकृत व्यक्ति की पहुंच संभव हो जाती है, तो उस व्यवसायिक संगठन से जुड़े हुए बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियों का उपयोग गलत तरीके से किया जा सकता है।
  • डाटा वेयरहाउस में जमा जानकारियों पर साइबर अटैक जैसे की हैकिंग या वायरस आदि का खतरा बना रहता है।
  • डेटा वेयरहाउस का निर्माण और कार्यान्वयन निश्चित रूप से जटिल प्रक्रिया है तथा इसमें बहुत अधिक समय और धन के निवेश की आवश्यकता होती है।
  • हालांकि डाटा वेयरहाउस की अवधारणा सुनने में बहुत ही आसान लगता है लेकिन इसका उपयोग करने के लिए बहुत ही विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, क्योंकि डाटा को इकट्ठा करना, उन्हें सही प्रारूप में संग्रहित करना, डेटा का विश्लेषण करना तथा आवश्यक रिपोर्ट प्रदान करने के लिए बहुत अधिक अनुभव  और ज्ञान की आवश्यकता होती है।
  • डाटा वेयरहाउस जॉब के लिए उच्च क्षमता वाले कंप्यूटर तथा इन्हें प्रबंधित करने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता होती है जिससे व्यवसायिक संगठन का कुल खर्च बढ़ जाता है।

Summery :- डाटा वेयरहाउस का उपयोग किसी संगठन से संबंधित अलग-अलग जानकारियों को संग्रहित करने के लिए किया जाता है। बाजार में MarkLogic (मार्कलॉजिक), Amazon Web services (अमेज़न वेब सर्विस), Oracle  (ओरेकल), Teradata (टेराबाइट) जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियां डाटा वेयरहाउस की सुविधा प्रदान करती है। कोई भी व्यवसायिक संगठन इनसे मासिक या सालाना शुल्क देकर डाटा वेयरहाउस की सुविधा ले सकता है। इसके अलावा अगर कोई संगठन चाहे तो अपना स्वयं का भी वेयरहाउस विकसित कर सकता है, हालांकि इसमें इसके लिए बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होती है।

 

What is Process Management in Hindi?

Author: admin | On:28th Nov, 2020 | 504 View

What is Process Management in Hindi?

What is Process in Hindi:- जब कोई प्रोग्राम कंप्यूटर के central processing unit (CPU) में निष्पादन की अवस्था में रहता है तो उसे Process (प्रोसेस) कहते हैं अर्थात किसी निष्पादित हो रहे सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम को प्रोसेस कहते हैं।

Definition of Process Management in Hindi :- प्रोसेस मैनेजमेंट ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा विभिन्न प्रोसेस को प्रबंधित करने की प्रक्रिया है,  प्रोसेस मैनेजमेंट के अंतरगत नए प्रोसेस का निर्माण करना, उन्हें schedule (शिड्यूल) करना, किसी प्रोसेस के निष्पादन को समाप्त करना, और अगर किसी कारण से प्रोसेस का निष्पादन पूरा होने से पहले ही रुक जाता है, तो उन कारणों का पता करके उन्हें फिर से चालू करना जैसे विभिन्न कार्य सम्मिलित है।

कोई भी प्रोग्राम निर्देशों का एक समूह होता है और इन निर्देशों को किसी न किसी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के उपयोग से लिखा गया होता है। निर्देशों के इन समूह को Source Code (सोर्स कोड) भी कहते हैं, इसके साथ ही प्रत्येक के प्रोग्राम को निष्पादित होने के लिए कुछ डाटा और संसाधनों की भी आवश्यकता होती है।  प्रोसेस मैनेजमेंट की प्रक्रिया में प्रोग्राम के Source Code, Data और resources (संसाधन) आदि को भी शामिल किया जाता है, क्योंकि यह सब भी प्रोसेस का ही एक भाग होता है।

Function of Process Management in Hindi

Function of Process Management in Hindi :-  प्रोसेस मैनेजमेंट के अंतर्गत ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा निम्नलिखित कामों को किया जाता है :-

Process Management in Operating System in Hindi
Process Management in Operating System in Hindi
  • यह निर्धारित करना कि तब किस प्रोसेस का निष्पादन शुरू होगा तथा समय आने पर किसी प्रोसेस के निष्पादन को प्रारंभ करना।
  • किसी प्रोसेस के निष्पादन को कुछ समय के लिए रोकना या उसे पूरी तरह से बंद करना।
  • किसी Process द्वारा निष्पादन की प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले डेटा और संसाधनों को प्रोसेस तक उपलब्ध करवाना।
  • एक साथ निष्पादित हो रहे प्रोसेस के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान करके data और संसाधनों को आपस में साझा करने योग्य बनाना।
  • किसी एक process द्वारा उपयोग किए जा रहे संसाधन को अन्य प्रोसेस से सुरक्षित करना।
  • विभिन्न प्रोसेस को एक दूसरे को प्रभावित किए बिना एक साथ निष्पादित करना।

Key Components of Process Management in Hindi

Key Components of Process Management in Hindi :-  किसी OS (ऑपरेटिंग सिस्टम) द्वारा Process Management के अंतर्गत आने वाले कामों को पूरा करने के लिए निम्नलिखित घटकों का उपयोग किया जाता है :-

  1. Process states (प्रक्रिया की स्थिति) :- किसी भी प्रोसेस की स्थिति समय के अनुसार बदलती रहती है कुछ उदाहरण निम्नलिखित रूप से है
    • New:- जब किसी प्रोग्राम को कंप्यूटर के सेकेंडरी स्टोरेज यानि की हार्ड डिस्क से लेकर प्राइमरी मेमोरी अर्थात RAM में लाकर लोड किया जाता है, उस समय उसकी स्थिति को न्यू कहते है।
    • Ready:- कोई Process कंप्यूटर के RAM में निष्पादित होने के लिए तैयार रहता है तो उसे Ready की स्थिति कहते है।
    • Waiting: इसमें प्रोसेस एक निर्दिष्ट समय के लिए CPU time और अन्य संसाधनों की प्रतीक्षा करता है।
    • Executing: यह प्रोसेसेस के निष्पादन की अवस्था है।
    • Blocked:यह एक time interval है जिसमे प्रोसेस I / O संचालन जैसी घटना को पूरी होने की प्रतीक्षा करता है।
    • Terminated:- इस अवस्था में किसी प्रोसेसेस को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाता है तथा मेमोरी और इनपुट आउटपुट उपकरण को पूरी तरह से स्वतंत्र कर दिया जाता है।
  2. Process Control Block(PCB) :- प्रोसेस कंट्रोल ब्लॉक एक प्रकार का data structure है, जिसका उपयोग OS द्वारा किसी प्रक्रिया के बारे में सभी जानकारियों को संग्रहीत करने के लिए किया जाता है। इसमें किसी प्रोसेस से संबंधित कई महत्वपूर्ण जानकारियां होती है, उनके कुछ नाम निम्नलिखित रुप से हैं,
    • Process Id (प्रोसेस आईडी) :- यह एक unique नंबर होता है जो किसी प्रोसेस को विशेष रूप से पहचानने में मदद करता है।
    • Program Counter (प्रोग्राम काउंटर) :- यह बताता है कि वर्तमान निर्देश को निष्पादित करने के बाद CPU द्वारा अगला कौन सा निर्देश निष्पादित किया जाना है।
    • Process State:- यह प्रोसेस की स्थिति बताता है जैसे कि new, ready, running, waiting या terminated आदि।
    • Registers (रजिस्टर):- यह उन रजिस्टर के बारे में जानकारी देता है जिसका उपयोग प्रोसेस द्वारा किया जाना है ।
    • List of opened files:- किसी प्रोसेस द्वारा एक बार में कई फाइलों का उपयोग किया जा सकता है, उन्हीं से संबंधित जानकारी इसमें होती है।
    • List of I/O devices:- किसी प्रोसेस द्वारा विभिन्न कार्यों को पूरा करने के लिए कई इनपुट/आउटपुट उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिनकी जानकारी इस में मिल जाती है।
  3. Process Architecture (प्रोसेस आर्किटेक्चर):- उपयोगकर्ता द्वारा दिए जाने वाले input को output में परिवर्तित करते समय CPU जिस पद्धति, सिस्टम तथा डिजाइन का उपयोग होता है, उसे ही प्रोसेस आर्टिटेक्चर करते हैं।  प्रोसेस आर्टिटेक्चर के चार प्रमुख भाग निम्नलिखित रूप से है :-
    • Stack (स्टैक):- यह टेम्परेरी डेटा जैसे की फ़ंक्शन के पैरामीटर, local variables और returns addresses आदि को संग्रहीत करता है।
    • Heap (हीप ):- कोई प्रोसेस अपने निष्पादन काल में जिस मेमोरी को संसाधित करता है उससे सम्बंधित जानकारी होती है।
    • Data:- इसमें प्रोसेस के source code में लिखे गए variable होते है।
    • Text:- यह प्रोसेस के वर्तमान गतिविधि को दर्शाता है, जिसे प्रोग्राम काउंटर के प्रदर्शित किया जाता है।
  4. Inter-process Communication (IPC) :- इंटर प्रोसेस कम्युनिकेशन (IPC) के माध्यम से विभिन्न प्रोसेस आपस में जानकारियों का आदान-प्रदान करके संचार करती हैं, जिससे कि मल्टीप्रोसेसिंग कंप्यूटर में प्रोसेस के बीच सामंजस्य स्थापित करने तथा कंप्यूटर के संसाधनों को प्रोसेसेस के बीच साझा करने में मदद मिलती है।
  5. Deadlock :-डेडलॉक या गतिरोध एक ऐसी स्थिति है जब किसी मल्टिप्रोसेसिंग CPU में process का निष्पादन अवरुद्ध हो जाता है, क्योंकि एक साथ निष्पादित हो रहे कई अलग-अलग प्रोसेस कंप्यूटर सिस्टम के संसाधनों को एक साथ उपयोग करने का प्रयास करती है, जिससे कि किसी भी प्रोसेस का निष्पादन ठीक से पूरा नहीं हो पाता है और सभी process के निष्पादन की प्रक्रिया रुक जाती है। process management किसी operating system या OS में विभिन्न प्रोसेस के बीच सिस्टम के संसाधनों को साझा करके डेडलॉक की परिस्थिति को उत्पन्न होने से बचाता है।

Advantages of Process Management in OS in Hindi

Advantages of process management in os in Hindi :- ऑपरेटिंग सिस्टम में प्रोसेस मैनेजमेंट की तकनीक का उपयोग करने से निम्नलिखित लाभ मिलता है :-

  • यह कंप्यूटर के सीपीयू को मल्टिप्रोसेसिंग करने में मदद करता है जिससे की सीपीयू एक साथ एक से अधिक प्रोग्राम का निष्पादन कर पाता है।
  • यह कंप्यूटर के विभिन्न संसाधन जैसे कि मेमोरी में जमा डाटा तथा विभिन्न इनपुट-आउटपुट हार्डवेयर उपकरणों को प्रोसेस के बीच साझा करने में मदद करता है।
  • यह कंप्यूटर के प्रदर्शन क्षमता को बढ़ाता है जिससे कि कंप्यूटर जल्दी से जल्दी उपयोगकर्ता के समक्ष आउटपुट प्रदान करने में सक्षम हो पाता है।
  • ये डेडलॉक अर्थात प्रोसेस के बीच संसाधनों के लिए उत्पन्न होने वाले आपसी गतिरोध से बचाता है।

 

 

What is OSI Model in Hindi?

Author: admin | On:28th Nov, 2020 | 121 View

What is OSI Model in Hindi?

OSI model (ओएसआई मॉडल) का पूरा नाम Open Systems Interconnection (ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन मॉडल)  है ।

Definition of OSI Model in Hindi :-  ये ISO या International Organization for Standardization द्वारा बनाया गया नियमों का एक समूह या प्रोटोकॉल है। इसका उपयोग किसी नेटवर्किंग प्रणाली (networking system) में सभी मशीन जैसे की Computer, Laptop, Printer, Scanner आदि के बीच communication (संचार) के लिए आवश्यक नियमों को परिभाषित करने के उद्देश्य से किया जाता है।

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OSI Model in Hindi

अगर साधारण शब्दों में कहें तो OSI एक वैचारिक ढांचा (Conceptual Framework) है, जो विभिन्न कंप्यूटर प्रणालियों को नेटवर्क में एक दूसरे के साथ संवाद करने में सक्षम बनाने के लिए एक आवश्यक मानक (standard) प्रदान करता है। OSI एक सार्वभौमिक (universal) मानक है, इसलिए नेटवर्क से जुड़े सभी उपकरण इसके नियमों का पालन करते हैं। जिससे किसी भी उपकरण को आपस में जानकारियों का आदान-प्रदान करने में कोई समस्या नहीं होती है।

OSI Model में कुल 7 Layers (परत) होते है। इसलिए OSI को कई बार seven layers framework के नाम  बुलाया जाता है । इन सभी 7 Layers के बारे में हम आगे विस्तार से पढ़ेंगे, लेकिन उससे पहले हम ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन के इतिहास को जान लेते हैं।

History of Open Systems Interconnection in Hindi:- 1961 में सबसे पहले कंप्यूटर नेटवर्क को विकसित किया गया था लेकिन उस समय इसका उपयोग केवल US Army के द्वारा किया जाता था। 1970 के दशक में कंप्यूटर नेटवर्किंग का उपयोग समान्य लोगों के द्वारा भी किया जाने लगा इसी समय नेटवर्किंग को विकसित करने के लिए कई अनुसंधान चल रहे थे।  उस समय दो अलग-अलग कंप्यूटर जिनमें हार्डवेयर उपकरण और ऑपरेटिंग सिस्टम भिन्न हो उनके बीच बिना किसी समस्या के जानकारियों का आदान-प्रदान  करने के लिए किसी ऐसे नियमों की आवश्यकता थी जिनका पालन सभी कंप्यूटरों के लिए अनिवार्य हो। इसी उद्देश्य से 1983 में सबसे पहले OSI model की नींव रखी गई जिसका पालन आज भी उपकरणों द्वारा किया जाता है। 1984 में OSI architecture इसे International Organization for Standardization (ISO) द्वारा एक global network architecture के रूप में स्वीकार कर लिया गया।

Needs of OSI Model in Hindi

  • यह विभिन्न उपकरणों के बीच होने वाले communication को समझने में विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं की सहायता करता है।
  • नेटवर्क से जुड़े हुए अलग-अलग प्रकार के मशीनों के बीच जानकारियों का आदान-प्रदान करना एक जटिल कार्य है लेकिन OSI मॉडल इस जटिल कार्य को कई अलग-अलग layers में बांट देता है जिससे विभिन्न प्रकार इस समस्याओं का निवारण करना बहुत आसान हो जाता है।
  • यह नेटवर्क के लिए नए तकनीकों को विकसित करने तथा उन्हें समझने में सहायता करता है।
  • यह विभिन्न हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर निर्माता कंपनियों को एक ऐसे उत्पाद का निर्माण करने में सहायता करता है जो कि सभी प्रकरणों के साथ बिना किसी समस्या के संचार करने में सक्षम हो।
  • यह बहुत ही flexible या लचीला मॉडल है जो कि नेटवर्क में किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के कामों के लिए आवश्यक प्रोटोकॉल को चुनने पूरा अवसर प्रदान करता है। उदाहरण के लिए नेटवर्क में किसी फाइल को हस्तांतरित करने के लिए UDP और TCP जैसे कई प्रोटोकॉल उपलब्ध है लेकिन इनमें से किस प्रोटोकॉल का चुनाव करना है इसका निर्णय network administrator द्वारा आवश्यकताों के अनुसार द्वारा बहुत आसानी से किया जा सकता है।

Seven Layers of OSI Model in Hindi

Seven Layers of OSI Model in Hindi:- ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन मॉडल में कुल 7 परत होते हैं, जिनका नाम और उपयोग निम्नलिखित रुप से है:-

  • Application Layer (एप्लिकेशन लेयर) :- इसे end user लेयर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि एप्लीकेशन लेयर में मौजूद सॉफ्टवेयर, नेटवर्क के उपयोगकर्ता से दिए जाने वाले डेटा के साथ सीधे संपर्क करती है। यह लेयर उस पार्टनर की जांच करता है जिसके साथ संचार करना है तथा संचार के लिए आवश्यक संसाधनों के उपलब्धता की भी जांच करता है। वेब ब्राउज़र और अन्य इंटरनेट से जुड़े app जैसे कि Outlook और Skype एप्लिकेशन लेयर प्रोटोकॉल का उपयोग करते हैं।
  • Presentation Layer (प्रेजेंटेशन लेयर) :- एप्लिकेशन लेयर से मिलने वाले data को प्रेजेंटेशन लेयर में आवश्यक के अनुसार ट्रांसलेट करके नेटवर्क पर प्रसारित किया जाता है। उदाहरण के लिए एप्लीकेशन लेयर में डेटा ASCII रूप में होता है जिसे प्रेजेंटेशन लेयर में Binary Coded में परिवर्तित कर दिया जाता है। इसके आलावा प्रेजेंटेशन लेयर में डेटा को Comperes करके उसके आकर को छोटा किया जाता है तथा Encryption / Decryption भी किया जाता है।
  • Session Layer (सेशन लेयर):- इसका उपयोग नेटवर्क से जुड़े हुए उपकरणों के बीच की बातचीत की प्रक्रिया को स्थापित करने तथा उन्हें बनाए रखने करने के लिए किया जाता है। साथ ही यह जानकारियों के हस्तांतरण में होने वाले बाधाओं को दूर करता है और किसी मैसेज को भेजने में असफल होने पर उसे से भी recover करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • Transport layer (ट्रांसपोर्ट लेयर):- यह विभिन्न कंप्यूटरों के बीच नेटवर्क के उपयोग से जानकारियों को स्थानांतरित करने के लिए जिम्मेदार है और यह डेटा के प्रवाह को भी नियंत्रित करता है। यह निर्धारित करता है कि कितना डेटा भेजना है, इसे कहाँ भेजना जाता है और किस दर से भेजना है।
  • Network Layer :- यह नेटवर्क से जुड़े सभी डिवाइसेस की लोकेशन को ट्रैक करता है। यह नेटवर्क की स्थिति, सेवा की प्राथमिकता जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर के आधार पर डेटा को स्रोत से गंतव्य तक ले जाने के लिए सर्वोत्तम मार्ग निर्धारित करता है। यह एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में डेटा को प्रसारित करने का काम भी करती है।
  • Data-Link Layer (डेटा लिंक लेयर) :- यह डेटा फ़्रेम के त्रुटियों को ठीक करके उन्हें हस्तांतरण के लिए जिम्मेदार है। यह डेटा को भेजने और प्राप्त करने वाले उपकरणों के बीच डेटा प्रवाह की गति को प्रबंधित करता है। यह IP address के आधार पर नेटवर्क से जुड़े सभी उपकरणों को uniquely पहचानने में सक्षम है।
  • Physical layer (फिजिकल लेयर):- यह OSI मॉडल का सबसे निचला परत है। यह विभिन्न उपकरणों के बीच की भौतिक रूप से संबंधों को स्थापित करता है। नेटवर्क में जानकारियां सिग्नल के रूप में प्रसारित होती है यह सिग्नल electrically, optically या radio waves के रूप में हो सकता है। फिजिकल लेयर विभिन्न कंप्यूटर से प्राप्त होने वाले data को सिग्नल के रूप में परिवर्तित करता है।

The Advantages of the OSI model in Hindi

  • यहां नेटवर्क से जुड़े सभी मशीन जैसे कि कंप्यूटर, लैपटॉप, प्रिंटर, स्कैनर आदि को एक standard protocol प्रदान करता है जिसका उपयोग करके सब आपस में जानकारियों का आदान प्रदान कर सकते हैं।
  • ओएसआई मॉडल आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करता है जिसका उपयोग करके नेटवर्क Connection स्थापित किया जा सकता है।
  • यह नेटवर्क के निर्माण के लिए आवश्यक हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का निर्धारण करने में network administrators की मदद करता है।
  • यह वायरलेस नेटवर्क कनेक्शन जैसे कि Radio Signals या WIFI तथा Wired Network मतलब की ऐसा नेटवर्क जिन्हें तार या केवल के मदद से स्थापित किया जाता है इन दोनों का ही समर्थन करता है।
  • ओएसआई मॉडल हार्डवेयर निर्माताओं को ऐसे उत्पाद निर्माण करने में मदद करता है जो कि नेटवर्क से जुड़े सभी प्रकार के उपकरणों के साथ संवाद करने में सक्षम हो।
  • नेटवर्किंग घटकों के बीच उपयोग की जाने वाली संचार प्रक्रिया को समझने में मदद करता है जिसके उपयोग से विद्यार्थी और इंजीनियर नई Product और Services का निर्माण कर सकते हैं।
  • ओएसआई मॉडल नेटवर्क में प्रवाहित होने वाले data को अधिक सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है।
  • यह एक जटिल प्रक्रिया को कई अलग-अलग परतों में बांट देता है जिससे इन्हें समझना काफी आसान हो जाता है जो कि इसे अधिक अनुकूल और सुरक्षित बनाता है।
  • OSI Models का प्रत्येक layer या परत स्वतंत्र रूप से काम करता है अर्थात अगर किसी एक layer में कोई बदलाव किया जाए तो इसका प्रभाव दूसरे layer पर बहुत कम ना के बराबर होता है।
The Disadvantages of the OSI model in Hindi 
  • यह एक theoretical model (सैद्धांतिक मॉडल) है, जो technology की उपलब्धता पर विचार नहीं करता इसलिए इसका practical implementation (व्यावहारिक कार्यान्वयन) बहुत ही जटिल हो सकता है।
  • OSI मॉडल बहुत ही जटिल और महंगा है।
  • नेटवर्क में किसी विशेष कार्य को करने के लिए कई अलग-अलग प्रकार के प्रोटोकॉल उपलब्ध होते हैं जैसे कि Email भेजने के लिए IMAP, POP3, SMTP जैसे प्रोटोकॉल उपलब्ध है। लेकिन OSI मॉडल किसी एक प्रोटोकॉल को उपयोग करने का सुझाव नहीं देता है, इसलिए यह पूरी तरह से नेटवर्क इंजीनियर के ऊपर र्भर करता है कि वह नेटवर्क की आवश्यकताओं का विश्लेषण करके इसका निर्धारण करें कि किसी विशेस काम के लिए उसे किस प्रोटोकॉल का चुनाव करना है।
  • OSI Models के कई पड़त है जो एक ही काम को बार-बार करते हैं, उदाहरण के लिए addressing, flow control और error control जैसे सेवाओं को कई परतों द्वारा किया दोहराया जाता है। इससे व्यर्थ में समय की बर्बादी होती है।
  • एक वास्तविक नेटवर्क सिस्टम में कई ऐसी समस्याएं भी होती है जिनका समाधान OSI Models द्वारा उपलब्ध नहीं करवाया जाता है, इसके लिए अतिरिक्त प्रोटोकॉल का उपयोग करना पड़ता है।
  • Open Systems Interconnection Models को लॉन्च करने से पहले ही बाजार में TCP/IP प्रोटोकोल उपलब्ध थे। जिन्हें शिक्षाविदों द्वारा बहुत अधिक पसंद किया जाता था। साथ ही जब OSI मॉडल के प्रारंभिक संस्करण में बहुत सारी खामियां थी।
  • OSI यूरोपीय समुदायों और अमेरिकी सरकार का एक उत्पाद था, और इसे जबरदस्ती लागू करवाने की कोशिश की जा रही थी इसलिए शोधकर्ताओं और प्रोग्रामरों द्वारा इसका बहुत विरोध किया गया था।
  • इसमें कोई भी Layers स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकता है क्योंकि प्रत्येक Layers डेटा के लिए अपने पिछले लिए Layers के ऊपर पूरी तरह से निर्भर है।

Conclusion on OSI Models in Hindi :-  ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन मॉडल या ओएसआई मॉडल एक मार्गदर्शन या सैद्धांतिक ढांचा है जिसका उपयोग नेटवर्क से जुड़े सभी उपकरणों को आपस में जानकारियों का आदान प्रदान करने योग्य बनाने के लिए किया जाता है। इसे ISO द्वारा मान्यता प्राप्त है एक universal (सार्वभौमिक) framework है। इसलिए इसका उपयोग सभी हार्डवेयर निर्माता और सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन निर्माताओं द्वारा करना अनिवार्य है। यह तार या cable तथा बिना तार या wireless दोनों के उपयोग से किए जाने वाला नेटवर्क संचार के लिए मान्य है। OSI Models के कारण किसी भी web application developers को इन बातों की चिंता नहीं करनी पड़ती है कि कोई application की अलग-अलग उपकरणों के बीच जानकारियों का आदान-प्रदान किस प्रकार से करेगा क्योंकि सभी मशीन एक universal फ्रेमवर्क का पालन करते हैं।

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